Inflation kya hai?

 Economy: Inflation 

Inflation kya hota hai| मुद्रा स्फीति किसे कहते है| इनफ्लेशन क्या है| mudra sfiti ka kisi Desh ki arthvyavadth pat kya prabhav hota hai| महंगाई कैसे बढ़ती है|

मुद्रास्फीति (इन्फ्लेशन)
महंगाई के कारण और मापन

महंगाई बढ़ने पर पैसे का मूल्य कम हो जाता है, जिससे बचत पर नकारात्मक असर पड़ता है।
किसी भी अर्थव्यवस्था में महंगाई बढ़ने के मुख्य कारण मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन होते हैं।मुद्रास्फीति को सरल शब्दों में महंगाई भी कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण कारक है जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में मदद करता है। इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए आइए चलिए…पिछले एक साल में आपने मुद्रस्फीति (Inflation) शब्द को कई बार सुना होगा। आरबीआई की ओर से लगातार ब्याज दरों में इजाफा करने के पीछे की वजह भी यही है। आखिर ये मुद्रास्फीति क्या होती है और आम आदमी पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। आइए हम इसे जानते हैं।मुद्रास्फीति का अर्थ होता है महंगाई। जब वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं और लोगों को उन्हें खरीदने के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, तो इसे मुद्रास्फीति कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर, 1997 में आटा की कीमत 12 रुपये प्रति किलो थी, लेकिन आजकल एक किलो आटा खरीदने के लिए लगभग 35 रुपये का भुगतान करना पड़ता है।मुद्रास्फीति के क्या प्रभाव होते हैं?
What are the effects of inflation?
 
मुद्रास्फीति को एक दोधारी तलवार की तरह माना जाता है। यदि यह दो प्रतिशत के आसपास रहता है, तो अर्थशास्त्री द्वारा माना जाता है कि अर्थव्यवस्था स्थिर है और उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही है। मांग और आपूर्ति अच्छी स्थिति में है।
जब भी मुद्रास्फीति किसी अर्थव्यवस्था की विकास दर को पार करती है। इसे एक संकेत माना जाता है कि अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है।
आम लोगों पर मुद्रास्फीति का क्या प्रभाव पड़ता है?
What is the impact of inflation on common people?
 
You must read:
 
बढ़ती महगाई 

 

मुद्रास्फीति बढ़ने का आम जनता पर इसका नकारात्मक पड़ता है। वस्तुओं और सेवाओं के दाम तेजी के बढ़ने के कारण कई चीजें आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाती हैं, क्योंकि ऐसा देखा जाता है कि जब भी महंगाई बढ़ती तो आमदनी में इजाफा रुक जाता है और लोगों को उतनी ही सैलरी में गुजारा करना पड़ता है।
कंपनियों पर मुद्रा स्फीति का प्रभाव?
Impact of inflation on companies
कंपनियों पर मुद्रास्फीति का प्रभाव बढ़ता है। मुद्रास्फीति के बढ़ने से कंपनियों को माल का उत्पादन करने में महंगाई का सामना करना पड़ता है, जिससे मार्जिन में कमी होती है। इसके परिणामस्वरूप, कर्मचारियों की सैलरी में भी कमी होती है। जब महंगाई बढ़ जाती है, तो कंपनियां अपना आर्थिक बोझ कम करने के लिए छंटनी आदि का सहारा लेती हैं।
मुद्रा स्फीति की गणना कैसे की जाती है?
How is inflation calculated?
 
गणना करने के लिए, सरकार द्वारा एक विशेष बास्केट बनाया जाता है जिसमें कुछ महत्वपूर्ण वस्तुएं और सेवाएं शामिल होती हैं। इस बास्केट में शामिल वस्तुओं की कीमतों को निरंतर जांचा जाता है और उनके बदलते मूल्यों के आधार पर मुद्रास्फीति की गणना की जाती है। खुदरा मुद्रास्फीति (CPI) में यह बास्केट आम आदमी की खरीदारी को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाता है, जबकि थोक मुद्रास्फीति (WPI) में इसमें थोक वस्तुओं की कीमतों को शामिल किया जाता है। इन दोनों मुद्रास्फीति दरों का उपयोग करके सरकार और आर्थिक निकायों को देश की मुद्रास्फीति को मापा जाता है|

मुद्रास्फीति के क्या कारण है?

इन्फ्लेशन के दो प्रमुख कारण होते हैं, जो मुद्रास्फीति के कारण बढ़ते और घटते हैं।
  1. मांग आधारित मुद्रा स्फीति
demand driven inflation
 
मांग आधारित मुद्रास्फीति का अर्थ होता है कि जब वस्तुओं और सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ती है और उत्पादन कम होता है, तो मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है। इसके विपरीत, मांग कम होने से मुद्रास्फीति कम होती है। उदाहरण के रूप में, कोरोना महामारी के बाद दुनिया भर में गाड़ियों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई। इसलिए, कंपनियां गाड़ियों के दामों में तेजी से बढ़ोतरी कर रही थी
2. लागत आधारित मुद्रा स्फीती 
cost based inflation
 
लागत आधारित मुद्रास्फीति का अर्थ होता है कि जब भी वस्तुओं और सेवाओं के दाम बढ़ जाते हैं, तो उनकी लागत भी बढ़ जाती है। इसके विपरीत, जब दाम कम होते हैं, तो उनकी लागत भी कम होती है। उदाहरण के रूप में, कोरोना महामारी के दौरान आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने से स्टील की कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ था। इसके परिणामस्वरूप, लोगों को सरिया और अन्य उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ा।
 
मुद्रा स्फीति को काबू कैसे किया जाता है?
How is inflation controlled?
 
 
मुद्रास्फीति को कंट्रोल में रखने के लिए आवश्यकता होती है ताकि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में गति बनी रहे। जब यह निर्धारित सीमा से अधिक हो जाती है, तो उस देश के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि करने की शुरुआत करता है। इसका एक उदाहरण है भारत में, जहां आपने पिछले एक साल में देखा होगा। आरबीआई ने मई 2022 से रेपो रेट को 2.5 प्रतिशत बढ़ा दिया था ताकि महंगाई को कम किया जा सके।
 
वहीं, कोरोना महामारी के समय महंगाई कम हो गई थी, इसलिए आरबीआई ने मांग को बढ़ाने के लिए रेपो रेट को कम किया था।
 
Friends, मुद्रा स्फीति से संबंधित जो जानकारी हमने न्यूज पेपर, पत्र पत्रिकाओं और अन्य संसाधनों से जानकारी जुटाकर अपने आर्टिकल में लिख दी है। हो सकता है इसमें कोई कमी रह गई हो, अपनी तसल्ली केलिए आप वित्त मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते है|
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

Inflation क्या है? [FAQ]

Ans. भारत में महँगाई को मुख्य रूप से दो सूचकांकों से मापा जाता है:

  •  WPI (Wholesale Price Index) – थोक स्तर की कीमतें
  • CPI (Consumer Price Index) – खुदरा उपभोक्ताओं के स्तर पर कीमतें

मार्च 2025 तक खुदरा महँगाई दर (CPI) लगभग 4.85% के आसपास रही है। यह RBI के 2%–6% के लक्ष्य के भीतर है।

Ans. महँगाई बढ़ने पर:

  • रोजमर्रा की वस्तुएं महंगी हो जाती हैं
  •  सेविंग्स की वैल्यू कम हो जाती है
  • Fixed income वालों की परेशानी बढ़ती है
  •  कर्ज लेने वालों पर EMI का भार बढ़ सकता है

Ans. माँग और आपूर्ति में असंतुलन

  1.  कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि
  2.  मुद्रा आपूर्ति (Money Supply) में इज़ाफा
  3.  नीतिगत कारण (जैसे टैक्स, GST आदि)

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Follow by Email
LinkedIn
LinkedIn
Instagram
WhatsApp
Scroll to Top